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नई और पुरानी पीढ़ी के बीच द्वंद्व और प्रतिद्वंद : एक विचारणीय प्रश्न !

आज, हमारे भारत के बारे में एक कड़वा सच लिखने बैठा हूँ। बात है नई जमाने के लोगों और पुरानी पीढ़ी के बीच के फासले की। दोनों की सोच, समझ और ज़िंदगी देखने का नज़रिया कितना अलग हो गया है, ये गौर करने वाली बात है। ये भी देखना ज़रूरी है कि इस सोच के फर्क का हमारे समाज पर क्या असर पड़ रहा है? फायदा क्या है, नुकसान क्या हो रहा है?

पुरानी पीढ़ी का नज़रिया:
वो लोग जिन्होंने गुलामी का दौर देखा, आज़ादी की लड़ाई देखी, देश का बंटवारा झेला, और फिर उसके बाद धीरे-धीरे बढ़ते भारत को देखा… उनकी ज़िंदगी बिल्कुल अलग हालात में गुज़री। उनके मूल्य बने थे त्याग, संयम और सबके भले की सोच पर। कम संसाधनों में गुज़ारा करना, मुश्किलों का सामना करना उनकी आदत में शुमार था। उनकी जड़ें परंपरा और रिवाज़ों में गहरी थीं। समाज को कैसे बांधे रखें, ये उनकी पहली प्राथमिकता थी।

नई पीढ़ी का रुख:
इधर नई पीढ़ी, जो टेक्नोलॉजी और ग्लोबलाइजेशन के बीच पली-बढ़ी है, उसकी सोच और ख्वाहिशें बिल्कुल बदल गई हैं। ये ज्यादा महत्वाकांक्षी हैं, आज़ाद ख्याल हैं और अपनी निजी ज़िंदगी को तरजीह देते हैं। इंटरनेट के ज़रिए दुनिया भर का अनावश्यक एवं अवांछनीय ज्ञान जिसकी उन्हें कोई आवश्यकता नहीं है वह उनकी मुट्ठी में है, जिससे उनकी सोच का दायरा काफी बदल गया है या बड़ा हुआ है। ये एक्सपेरिमेंट और नई चीज़ों को पसंद करते हैं। समाज में बदलाव को लेकर खुले दिमाग के हैं।

कहाँ दिखता है ये फर्क?
ये फर्क हर जगह दिख जाता है:
पढ़ाई-लिखाई: पुराने लोगों के लिए शिक्षा का मतलब था ज्ञान और चरित्र बनाना। आज के युवा इसे करियर बनाने और पैसा कमाने का ज़रिया मानते हैं।
नौकरी-धंधा: पहले स्टेबिलिटी और सुरक्षा सबसे बड़ी बात थी। आज का युवा जोखिम उठाकर अपना काम शुरू करना (स्टार्टअप) चाहता है।

परिवार और रिश्ते: पुरानी पीढ़ी संयुक्त परिवार और सामाजिक ज़िम्मेदारियों को तवज्जो देती थी। नई पीढ़ी अपनी आज़ादी और प्राइवेसी, अपने ख्याल अपने विचार और अपने फैसलों को भले ही वह आज के इस खतरनाक युग में खरे न उतरते हो और केवल मात्र उनको दिखावे का भ्रम हो, मैं सही हूं और मैं ही ठीक हूं, को ज्यादा अहमियत देती है।

समाज पर क्या असर?
इस बदलाव का समाज पर गहरा असर पड़ा है। एक तरफ, नई पीढ़ी की आधुनिक सोच और टेक्नोलॉजी की जानकारी ने देश को तेज़ी से आगे बढ़ाया है। नए उद्योग खुले हैं, नौकरियों के रास्ते बने हैं, भारत का दुनिया में दबदबा बढ़ा है।

लेकिन दूसरी तरफ, एक कड़वी हकीकत ये भी है कि पुरानी पीढ़ी के सिद्धांतों और मूल्यों को नज़रअंदाज़ करने से समाज में कई बुराइयाँ आई हैं। पारिवारिक बंधन ढीले पड़े हैं। “मैं” और “मेरा” की भावना बढ़ी है। सहनशीलता, बड़ों का आदर, उनके अनुभव की क़दर करने की समझ – ये सब कहीं खो सा गया है। मेरा निजी तजुर्बा और मानना यही है कि आज की पीढ़ी के बहुत से लोग मौके का फायदा उठाने वाले (अवसरवादी) बन गए हैं। और ऐसा करके वो खुद का ही नुकसान कर रहे हैं। उन्हें बुजुर्गों का तजुर्बा एक ऐसी पूंजी है, जो मुफ़्त में मिल सकती है, लेकिन वे उसे पाना ही नहीं चाहते। अपने आप को ही सबसे ज्यादा जानकार समझने की ग़लतफहमी में जी रहे हैं।

आज का युवा मानता है कि जो वो जानता है, वो उसके भविष्य के लिए काफी है। पर असलियत इससे उलट है। जिन लोगों ने 30-40-50 साल की ज़िंदगी के तजुर्बे देखे हैं, उन्होंने भारत में हर तरह के बदलाव को अपनी आँखों से देखा है – टेक्नोलॉजी, यातायात, संचार, लेखन, मशीनों का ज़माना, कंप्यूटर का दौर, गाड़ियों का बोलबाला… सब कुछ! मगर नई पीढ़ी उस अनुभव से कुछ सीखना ही नहीं चाहती। वो बेलाग ज़िंदगी जीना चाहते हैं। मेरा मानना है कि ये स्वच्छंदता नहीं, बल्कि उछलकूद (अनियंत्रित) प्रवृत्ति है। इसी वजह से ज़िंदगी में ज़रा सी भी मुसीबत आते ही, वो घबरा जाते हैं और गलत कदम उठाने को तैयार हो जाते हैं। उनमें वो धैर्य, वो परिपक्वता नहीं है। अगर सरकारी काम हो तो तुरंत रिश्वत देकर छुटकारा पाना चाहते हैं, चाहे उसके लिए कितना ही ज्यादा गुना पैसा ही क्यों न देना पड़े। संघर्ष करना उन्हें पसंद नहीं। दोस्ती का भी यही हाल है। छोटी सी बात पर मनमुटाव होते ही 10 – 20 साल पुरानी दोस्ती भी दो मिनट में ख़त्म कर देते हैं। और फिर किसी को भी अपनी ग़लती मानने में शर्म आती है। और परिणाम स्वरूप रिश्ते बिगड़ जाते हैं।

परिवारों की नई मुसीबतें:
पिछले 20-25 सालों में मैंने परिवारों में कुछ नए तरह के झगड़े भी देखे हैं:
माँ-बाप की खींचतान का फायदा: अगर पति-पत्नी में तनाव रहता है या उनकी सोच अलग है, तो बच्चे इसका पूरा फायदा उठाते हैं। जिस काम के लिए उन्हें लगता है पापा मना कर देंगे, वो मम्मी से कहते हैं। और अगर लगता है मम्मी नहीं मानेंगी, तो पापा से पूछते हैं। नतीजा? माँ-बाप में झगड़ा हो जाता है, और बच्चे चैन से अपनी मनमर्जी करते रहते हैं।

बच्चों को गलत तरीके से अपने पाले में करना: कई बार माएँ बच्चों को ये सोचकर ज्यादा लाड़-प्यार देने लगती हैं कि बुढ़ापे में यही काम आएंगे। वो बच्चों को पिता की बात न मानने के लिए उकसाती हैं। बच्चों का सामने या पति के पीठ पीछे वह अपने पति की बुराइयां करने में नहीं चूकती और तरह-तरह के लालच देकर, हर ग़लत-सही ख्वाहिश पूरी करके, बच्चों को अपनी तरफ कर लेती हैं। नतीजा? बच्चे अपने पिता से दूर हो जाते हैं। उनके दिल में ये बैठ जाता है कि पापा ही उनके दुश्मन हैं, जबकि हकीकत बिल्कुल अलग होती है। क्योंकि सोचिए न… हर बाप की ख्वाहिश होती है कि उसके बच्चे उससे भी ज्यादा काबिल बनें, ज्यादा सब्र वाले बनें, ज्यादा समझदार बनें, दौलत और शोहरत पाएँ और देश-दुनिया में नाम रोशन करें।

तो रास्ता क्या है?
साफ है कि दोनों पीढ़ियों के बीच एक सेहतमंद बातचीत और समझदारी पैदा करनी ही होगी। हमें बुजुर्गों के तजुर्बे और ज्ञान का सम्मान करना सीखना होगा। साथ ही, नई पीढ़ी की सोच और उसके सपनों को भी समझना होगा। सिर्फ तभी हम एक ऐसा मजबूत और खुशहाल भारत बना पाएंगे जहाँ पुरानी बातों और नई सोच का सही मेल हो। यही एक रास्ता है आगे बढ़ने का।

धन्यवाद,

सुनील दत्त गोयल
महानिदेशक, इम्पीरियल चैंबर ऑफ़ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री,
पूर्व उपाध्यक्ष , जयपुर स्टॉक एक्सचेंज लिमिटेड,!
जयपुर, राजस्थान
suneelduttgoyal@gmail.com

About Rtn. Suneel Dutt Goyal

Rtn. Suneel Dutt Goyal, a distinguished leader and visionary, has made significant contributions to Trade, Commerce, Industry, and Community service. Born and raised in Alwar and now based in Jaipur, Rajasthan, he is the Founder & Director General of the Imperial Chamber of Commerce and Industry (ICCI) since 2017. His leadership extends to key roles in the PHD Chamber of Commerce & Industry, the Confederation of Indian Industry (CII), and the Rotary Club Jaipur Round Town.

With over four decades of experience, Suneel has served as Co-Chairman of the Rajasthan Chapter of the PHD Chamber, Secretary, President and Zone Coordinator of the Rotary Club Jaipur Round Town, and Chairman, Treasurer and National Councillor for the Indian Institute of Material Management (IIMM). His dedication to community service is evident in his role as Patron of the Indian Red Cross Society and as a Life Member of the Indian National Trust for Art and Cultural Heritage (INTACH).

As Managing Partner of Goyal and Company, Suneel provides expert consultancy in SME IPOs, project financing, investments, and strategic business issues. He has played a pivotal role in the promoting & development of the Jaipur Stock Exchange Ltd., serving as its youngest Director and Vice-President, and has contributed to the formation of the Federation of Indian Stock Exchange Ltd.

Rtn. Suneel Dutt Goyal's expertise also spans corporate dairy farming and agriculture, where he drives innovation and sustainability. His multifaceted career and unwavering commitment to excellence make him a prominent figure in both the business and social sectors.