वन नेशन, वन एजुकेशन सिलेबस

राज्य और केंद्र सरकारों की शिक्षा नीति “वन इंडिया, वन एजुकेशन” होनी चाहिए। जिस तरह केंद्रीय विद्यालयों में पूरे भारत में एक ही यूनिफॉर्म/ड्रेस कोड और सिलेबस है, छुट्टियों से लेकर पढ़ाई के समय तक एक समान हैं, उसी मॉडल को पूरे देश के प्राइवेट स्कूलों में भी लागू करना चाहिए। यह पहल न केवल शिक्षा प्रणाली में समानता लाएगी, बल्कि छात्रों के लिए बेहतर अवसरों का द्वार भी खोलेगी।

शिक्षा के उद्देश्य और संसाधनों का बेहतर उपयोग
सरकार को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि जिन स्कूलों को रियायती दरों पर जमीन उपलब्ध कराई गई है, वे उन संसाधनों का उपयोग शिक्षा के उद्देश्यों के लिए कर रहे हैं। हमारा सभी शिक्षण संस्थानों से यह निवेदन है कि वे भूमि और भवन का गैर-शिक्षण कार्यों में उपयोग करने से बचें और उनका अधिकतम उपयोग बच्चों को शिक्षा प्रदान करने के लिए ही करें। ऐसा करने से सरकार के साथ उनका बेहतर सामंजस्य बना रहेगा।

उदाहरण के लिए, कई स्कूलों ने सरकार से मिली जमीन का उपयोग आधुनिक प्रयोगशालाओं, पुस्तकालयों और खेल सुविधाओं के निर्माण में किया है, जो छात्रों के सर्वांगीण विकास में सहायक साबित हुए हैं। हालांकि, ऐसा करने वाले शैक्षणिक संस्थानों की संख्या बहुत कम है। उम्मीद की जाती है कि अन्य शिक्षण संस्थान भी जमीन का उपयोग सरकार से किए गए वायदे के मुताबिक ही करें, जिससे छात्रों के जीवन में सुधार हो और राष्ट्र निर्माण में उनकी भागीदारी सुनिश्चित हो।

यदि कुछ जमीन वर्तमान में खाली है, तो उसे बेहतर योजनाओं के तहत उपयोग में लाने के सुझाव दिए जा सकते हैं। इन जमीनों पर वंचित बच्चों के लिए विशेष शैक्षणिक केंद्र या कौशल विकास कार्यक्रम चलाए जा सकते हैं। यह न केवल शिक्षा प्रणाली को सुदृढ़ करेगा, बल्कि समाज में समावेशी विकास को भी बढ़ावा देगा।

स्कूल प्रबंधन और सरकार के बीच सहयोग से यह सुनिश्चित किया जा सकता है कि उपलब्ध संसाधन अधिक छात्रों को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा देने के लिए उपयोग हों। यह न केवल शिक्षा क्षेत्र को मजबूत करेगा, बल्कि स्कूलों की सकारात्मक छवि भी बनाएगा।

निजी स्कूलों की भूमिका
निजी स्कूल शिक्षा के क्षेत्र में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं। वे छात्रों को उच्च गुणवत्ता की शिक्षा और आधुनिक सुविधाएं प्रदान करते हैं। उदाहरण के लिए, कुछ निजी स्कूल डिजिटल क्लासरूम, ई-लर्निंग प्लेटफॉर्म और विदेशी भाषाओं के अध्ययन के लिए विशेष कार्यक्रम चलाते हैं। ये पहल छात्रों को वैश्विक स्तर पर प्रतिस्पर्धा करने के लिए तैयार करती हैं।

हालांकि, यह सुनिश्चित करना भी आवश्यक है कि शिक्षा के साथ-साथ अन्य गतिविधियों में भी पारदर्शिता हो। स्कूल प्रबंधन को सरकार के साथ मिलकर एक पारदर्शी रूपरेखा तैयार करनी चाहिए, जिससे वे अपने शिक्षा से संबंधित उद्देश्यों को प्रभावी ढंग से पूरा कर सकें। इससे छात्रों और अभिभावकों का विश्वास भी बढ़ेगा।

फीस और पाठ्यपुस्तकों में समानता
फीस और पाठ्यपुस्तकों की कीमतों में संतुलन बनाए रखने के लिए सरकार और स्कूल प्रबंधन को एक पारदर्शी प्रणाली लागू करनी चाहिए। केंद्रीय विद्यालय की तरह, निजी स्कूलों में भी एक ही सिलेबस और पूरे भारत में एक समान शुल्क लागू किया जाना चाहिए।

इसके अतिरिक्त, जरूरतमंद छात्रों को किताबें और अन्य शैक्षणिक सामग्री कम या बिना शुल्क के उपलब्ध कराने के लिए सरकार और निजी स्कूल मिलकर एक तंत्र विकसित कर सकते हैं। यह कदम शिक्षा के अधिकार को सशक्त करेगा।
व्यापार एवं उद्योग जगत और विद्यार्थियों को लाभ
“वन नेशन, वन एजुकेशन” नीति का सबसे बड़ा फायदा यह होगा कि विद्यार्थी पूरे देश में समान स्तर की शिक्षा प्राप्त करेंगे। इससे व्यापार और उद्योग जगत को भी फायदा होगा, क्योंकि नौकरी के लिए आवेदन करने वाले सभी छात्रों का शैक्षणिक स्तर समान होगा।

रोजगार उपलब्ध करवाने वाले व्यापार एवं उद्योग जगत के मानव संसाधन विभाग को यह विश्वास होगा कि सभी राज्यों के छात्र “वन इंडिया, वन एजुकेशन” नीति के तहत समान शैक्षिक मानकों का पालन कर रहे हैं। इससे रोजगार के अवसरों में भी समानता सुनिश्चित होगी और छात्रों को एक समान स्तर पर आंका जाएगा।

सुझाव
सरकार को “वन नेशन, वन एजुकेशन सिलेबस” नीति को लागू करना चाहिए। सभी स्कूलों में एक समान सिलेबस और यूनिफॉर्म लागू होने से शिक्षा प्रणाली अधिक संगठित और समान हो जाएगी। केंद्रीय विद्यालयों की सफलता इस बात का प्रमाण है कि यह मॉडल पूरे देश में लागू किया जा सकता है।
इसके अलावा, स्कूल प्रबंधन और सरकार को साथ मिलकर काम करना चाहिए, ताकि शिक्षा का स्तर ऊंचा उठ सके और अधिक छात्रों को लाभ मिल सके। एक समर्पित कमेटी का गठन कर सभी स्कूलों की गतिविधियों की समीक्षा और संसाधनों के उपयोग की निगरानी की जा सकती है।

आज पूरे भारत देश में एक आम धारणा जनता में बन चुकी है कि निजी स्कूल केवल ड्रेस और किताब बेचने का कारोबार में ज्यादा ध्यान देते हैं | इस प्रकार की नकारात्मक छवि से बचने के लिए स्कूलों को भी अपने कार्यप्रणाली में परिवर्तन करने की जरूरत है, जिससे उनकी प्रतिष्ठा में वृद्धि हो और विद्यार्थियों के परिजन भी उनको और सम्मान की दृष्टि से देखें। ऐसा करने से दोनों ओर से परस्पर सामंजस्य स्थापित होगा और एक दूसरे के प्रति विश्वास और सम्मान भी बढ़ेगा।

हमारा अनुरोध है कि निजी स्कूल राष्ट्र निर्माण के लिए अपना योगदान दें। सरकार द्वारा रियायती दरों पर जमीन उपलब्ध कराए जाने के बाद यह उनकी जिम्मेदारी बनती है कि वे छात्रों को उच्चतम स्तर की शिक्षा प्रदान करें और उन्हें वास्तविक जीवन के लिए तैयार करें।

इस दृष्टिकोण से, स्कूल प्रबंधन और सरकार के बीच सहयोग मजबूत होगा, शिक्षा का उद्देश्य प्रभावी ढंग से पूरा होगा, और समाज के सभी वर्गों के छात्रों को समान अवसर प्रदान किए जा सकेंगे। यह कदम एक उज्जवल और समावेशी भारत की दिशा में एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर साबित होगा।

धन्यवाद,
सुनील दत्त गोयल
महानिदेशक
इम्पीरियल चैंबर ऑफ़ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री
जयपुर, राजस्थान
suneelduttgoyal@gmail.com

साइबर अपराधों का बढ़ता कहर: बैंक कर्मियों , सिम विक्रेताओं और ई-मित्र केंद्रों की मिलीभगत ने जनता को लूटा – पुलिस परेशान।

डिजिटल इंडिया के सपने के साथ देश तेजी से तकनीकी प्रगति की ओर बढ़ रहा है, लेकिन इस प्रगति की आड़ में साइबर अपराधों का खतरा भी गंभीर रूप से बढ़ गया है। बैंक कर्मियों , सिम कार्ड विक्रेताओं और ई-मित्र केंद्रों की मिलीभगत ने इस समस्या को और बढ़ावा दिया है। मेहनतकश नागरिकों की कमाई पर साइबर अपराधियों का निशाना अब एक विकराल समस्या बन गई है। इस मिलीभगत से जनता का विश्वास टूट रहा है और अपराधियों को लूट-खसोट का खुला मैदान मिल रहा है।

बैंकों की कमजोर प्रणाली
बैंक, जो जनता के धन और विश्वास की नींव पर खड़े होते हैं, अब खुद धोखाधड़ी के मामलों में सवालों के घेरे में हैं। कई बैंकों में फर्जी दस्तावेजों के आधार पर खाते खोल दिए जाते हैं। केवाईसी (KYC) प्रक्रिया, जो सुरक्षा का मुख्य आधार है, अक्सर महज औपचारिकता बनकर रह जाती है। इसके कारण अपराधी फर्जी खातों का उपयोग कर लेन-देन को अंजाम देते हैं। 

इसके अलावा, संदिग्ध लेन-देन की अनदेखी बैंकिंग प्रणाली की सबसे बड़ी खामी है। आरबीआई के नियमों के अनुसार, ₹50,000 से अधिक की नकद जमा या निकासी होने पर तुरंत उस खाते की जांच की जानी चाहिए। इसके अलावा, महीने में ₹1,00,000 से अधिक एवं 1 वर्ष में 10 लख रुपए तक का ही ट्रांजैक्शन आरबीआई के द्वारा अधिकृत है इससे ज्यादा का ट्रांजैक्शन होने पर  खाताधारक से संपर्क किया जाना चाहिए और ट्रांजैक्शन की सत्यता की पुष्टि की जानी चाहिए। बैंक कर्मियों द्वारा POS मशीन किसी को जारी करने पर यह सुनिश्चित करना चाहिए की आवेदक के व्यापार  के लिए  सही में इसकी आवश्यकता है भी या नहीं। जहाँ भी POS मशीन जारी की जाती है वहां की वीडियो KYC रिकॉर्ड की जानी चाहिए जिसमें बैंक कर्मी के साथ व्यापारी के साथ लाइव लोकेशन पर रिकॉर्डिंग होनी चाहिए।

आरबीआई को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि किसी भी असाधारण  अमाउंट के खाते में जमा होने पर उसे तुरंत होल्ड पर रख दिया जाना चाहिए और खाताधारक से संपर्क करके यह मालूम करें कि यह पैसा उसके पास कहां से आया वह उसका स्रोत बताएं अन्यथा वह पूरी सूचना आयकर विभाग को तुरंत सूचित कर दें और पुलिस को सूचना कर दें क्योंकि एक सामान्य  बचत खाते में इस तरह का बड़ा अमाउंट अगर आता है तो अपने आप ही शक के घेरे में आ जाता है और बैंक वालों के लिए यह मालूम करना बड़ा आसान काम है कि अमाउंट किसका आया और कहां से है यह दोनों उनको मालूम पड़ जाता है और यह अमाउंट अगर 3-4  दिन के लिए भी होल्ड कर दिया जाए तो जिसके  साथ भी धोखाधड़ी  हुई  है उसकी सूचना पुलिस व  बैंक तक पहुंच भी जाएगी और वह पैसा बैंक के खाते में ही जमा रह जाएगा । 

सिम कार्ड विक्रेताओं का गैर-जिम्मेदार रवैया
टेलीकॉम सेक्टर में भी गहरी मिलीभगत देखने को मिल रही है। सिम कार्ड वितरकों द्वारा बिना उचित दस्तावेज़ सत्यापन के सिम जारी करना एक आम बात हो गई है। फर्जी पहचान पत्रों के सहारे जारी किए गए सिम कार्डों का इस्तेमाल अपराधी जनता को ठगने और गुमनाम रहने के लिए करते हैं।

कई बार एक ही व्यक्ति के नाम पर 10-15 सिम कार्ड तक जारी कर दिए जाते हैं, जबकि नियमानुसार अधिकतम 9 सिम कार्ड जारी किए जा सकते हैं। टेलीकॉम कंपनियों की इस मिलीभगतसे सिम कार्डों का दुरुपयोग बढ़ गया है।

ई-मित्र केंद्र: धोखाधड़ी का नया अड्डा
जहां एक ओर ई-मित्र केंद्रों को सरकारी सेवाओं को आम लोगों तक पहुंचाने का माध्यम माना जाता है, वहीं ये केंद्र अब साइबर अपराधों का नया अड्डा बनते जा रहे हैं। ई-मित्र केंद्रों पर ग्राहकों की जानकारी बिना उचित सत्यापन के दर्ज की जाती है, जिससे उनकी गोपनीय जानकारी अपराधियों तक पहुंच जाती है। कई ई-मित्र केंद्रों पर फर्जी खातों को खोलने और सिम कार्ड वितरित करने में मिलीभगत के आरोप भी लग चुके हैं। यह स्थिति न केवल जनता की सुरक्षा के लिए खतरा है, बल्कि डिजिटल सेवाओं पर से भरोसा भी कम करती है।

ई-मित्र केंद्रों पर काम कर रहे कर्मचारियों की भी पुलिस वेरिफिकेशन द्वारा गहन जांच करने की आवश्यकता है यदि कोई कर्मचारी इस तरह की संदिग्ध गतिविधियों में संलिप्त पाया जाता है तो उसे राष्ट्रदोह की श्रेणी का अपराध मानते हुए  आजीवन इस तरह के कार्य करने के लिए बैन कर देना चाहिए।

संस्थानों की मिलीभगत से अपराधियों को बढ़ावा
बैंक कर्मियों , सिम विक्रेताओं और ई-मित्र की मिलीभगत  ने साइबर अपराधियों को एक सुनहरा मौका दिया है। ये अपराधी जनता की मेहनत की कमाई को ठगकर उसे देश विरोधी गतिविधियों में लगा रहे हैं। हाल के मामलों में देखा गया है कि कैसे फर्जी खातों और सिम कार्डों का उपयोग आतंकी फंडिंग और अन्य अपराधों में किया गया।

क्या है समाधान?
इस बढ़ते खतरे को रोकने के लिए सरकार और संबंधित संस्थाओं को तुरंत कदम उठाने होंगे। बैंकों को अपनी केवाईसी प्रणाली को सख्त बनाना होगा। बड़े लेन-देन पर रियल-टाइम निगरानी सुनिश्चित करनी होगी। बैंक कर्मचारियों की जवाबदेही तय करनी होगी ताकि वे धोखाधड़ी के मामलों में शामिल न हों।

सिम कार्ड वितरण के लिए टेलीकॉम कंपनियों को सख्त नियम लागू करने होंगे। फर्जी दस्तावेजों पर सिम जारी करने वाले विक्रेताओं के लाइसेंस रद्द किए जाने चाहिए।

ई-मित्र केंद्रों की नियमित जांच और निगरानी अनिवार्य होनी चाहिए। इन केंद्रों द्वारा की गई किसी भी मिलीभगतपर भारी जुर्माना लगाना चाहिए और लाइसेंस रद्द करना चाहिए।


साइबर अपराधों की बढ़ती घटनाओं ने देश में डिजिटल सुरक्षा की गंभीरता को उजागर किया है। बैंक कर्मियों, सिम विक्रेताओं और ई-मित्र केंद्रों के कर्मचारियों की मिलीभगत से ना  केवल जनता की संपत्ति छीन रही है, बल्कि देश की सुरक्षा को भी खतरे में डाल रही है। यदि समय रहते इन संस्थानों पर सख्त कार्रवाई नहीं की गई, तो जनता का विश्वास और देश की अर्थव्यवस्था दोनों को भारी नुकसान हो सकता है।

धन्यवाद,

सुनील दत्त गोयल
महानिदेशक
इम्पीरियल चैंबर ऑफ़ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री
जयपुर, राजस्थान

suneelduttgoyal@gmail.com

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ई-रिक्शा मालिक ही बनें चालक : सूदखोर माफियाओं पर कब लगेगी लगाम ?

हाल ही में सरकार ने ई-रिक्शा चालकों के हित में कलर कोडिंग, QR कोड, और एक व्यक्ति को केवल एक ई-रिक्शा प्रदान करने जैसे कदम उठाए हैं। ये उपाय स्वागत योग्य हैं, लेकिन इनसे समस्या का सम्पूर्ण समाधान नहीं हुआ है।

ई-रिक्शा रजिस्ट्रेशन प्रक्रिया को और पारदर्शी और सुरक्षित बनाने के लिए, सरकार को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि प्रत्येक ई-रिक्शा के रजिस्ट्रेशन में असली मालिक का ड्राइविंग लाइसेंस लिंक हो। इसका लाभ यह होगा कि ट्रैफिक पुलिस या अन्य संबंधित अधिकारी यह आसानी से जाँच कर सकेंगे कि जिस व्यक्ति के नाम पर ई-रिक्शा का रजिस्ट्रेशन हुआ है, वही व्यक्ति वास्तव में उसे चला रहा है या नहीं। इससे फर्जी मालिकाना हक और सूदखोर एवं माफियाओं द्वारा किराए पर चलाए जा रहे ई-रिक्शाओं पर प्रभावी नियंत्रण लगाया जा सकेगा, जो इस समय एक बड़ी समस्या बन चुकी है।

इसके अतिरिक्त, प्रत्येक ई-रिक्शा चालक के लिए यह अनिवार्य किया जाना चाहिए कि वह अपना पहचान पत्र गले में पहने। पहचान पत्र के माध्यम से उनकी पहचान सुनिश्चित की जा सकेगी, और यातायात व्यवस्था में पारदर्शिता बढ़ेगी। यह उपाय ट्रैफिक पुलिस और अन्य अधिकारियों को आवश्यक जानकारी आसानी से उपलब्ध कराने में सहायक होगा, जिससे किसी भी अनधिकृत व्यक्ति द्वारा ई-रिक्शा चलाने की घटनाओं पर अंकुश लगेगा।

यह आवश्यक है कि सरकार यह सुनिश्चित करे कि जो लोग ई-रिक्शा का पंजीकरण करवाते हैं, वे स्वयं ही उसे चलाएँ। कई सूदखोर माफियाओं ने एक ही नाम और पते से दर्जनों ई-रिक्शा खरीद रखे हैं और इसे एक मुनाफे वाले व्यापार मॉडल में बदल दिया है।

सरकार को इस समस्या का समाधान करने के लिए सक्रिय कदम उठाने की आवश्यकता है। इसके लिए, जिला परिवहन अधिकारी (डीटीओ) को निर्देश दिया जाना चाहिए कि वे इस प्रकार के ई-रिक्शा के पंजीकरण की स्कैनिंग करें। यदि किसी एक व्यक्ति या पते पर असामान्य संख्या में ई-रिक्शा पंजीकृत पाए जाते हैं, तो उनका पंजीकरण रद्द किया जाना चाहिए। इस प्रकार के कदम उठाकर, न केवल सूदखोरी पर अंकुश लगाया जा सकेगा, बल्कि जरूरतमंद नागरिकों के लिए रोजगार के अवसर भी बढ़ाए जा सकेंगे।

इस प्रथा के चलते, एक ही व्यक्ति कई ई-रिक्शा खरीदकर उन्हें किराए पर चला रहा है, जिससे गरीब और बेरोजगार लोग, जिनके पास ई-रिक्शा खरीदने के साधन नहीं हैं, मजबूरन प्रतिदिन 200 से 500 रुपये का किराया देकर इन्हें चलाते हैं।

इससे न केवल चालकों का आर्थिक शोषण हो रहा है, बल्कि ट्रैफिक और अन्य मुद्दे भी उत्पन्न हो रहे हैं। सरकार को चाहिए कि ई-रिक्शा पंजीकरण और संचालन के लिए सख्त नियम बनाए, जिससे वास्तविक जरूरतमंद लोगों को ही इस कार्य का लाभ मिल सके।

समस्याओं के समाधान हेतु सुझाव

1. सूदखोर माफियाओं पर रोक और कानूनी कार्यवाही

सरकार को ऐसे सूदखोर माफियाओं की पहचान कर उनके खिलाफ सख्त कानूनी कार्रवाई करनी चाहिए। इन लोगों को आर्थिक अपराधी घोषित कर उचित दंड दिए जाने चाहिए ताकि वे ई-रिक्शा चालकों का शोषण न कर सकें।

2. ई-रिक्शा चालकों के लिए सस्ते / कम ब्याज दर पर ऋण योजना

सरकार को ऐसे ई-रिक्शा चालकों की पहचान करनी चाहिए, जो केवल आजीविका के लिए इसे चला रहे हैं। इनके लिए बिना किसी प्रारंभिक भुगतान के और सस्ते / कम ब्याज दरों पर ऋण उपलब्ध कराया जा सकता है ताकि वे अपने ई-रिक्शा का स्वामित्व आसानी से प्राप्त कर सकें।

3. सामाजिक संगठनों की भागीदारी

सामाजिक संगठनों को भी इस दिशा में सक्रिय भूमिका निभानी चाहिए। वे आर्थिक रूप से कमजोर चालकों की सहायता कर सकते हैं और उनके लिए फंडिंग या ई-रिक्शा स्वामित्व योजनाएँ संचालित कर सकते हैं। इससे माफियाओं पर निर्भरता कम होगी और चालक आर्थिक रूप से सशक्त होंगे।

4. चार्जिंग और पार्किंग सुविधाओं का विकास

ई-रिक्शा की बढ़ती संख्या को देखते हुए, सरकार को अधिक से अधिक चार्जिंग स्टेशन और पार्किंग स्थल विकसित करने चाहिए। ये सुविधाएँ आसानी से उपलब्ध होनी चाहिए, जिससे चालकों को अनावश्यक खर्च से बचाया जा सके।

इन सभी उपायों को लागू कर हम न केवल ई-रिक्शा चालकों की स्थिति में सुधार ला सकते हैं, बल्कि सूदखोर माफियाओं के नियंत्रण में भी सफलता प्राप्त कर सकते हैं। इसके साथ ही, ये कदम एक स्वच्छ और सुरक्षित परिवहन व्यवस्था का निर्माण करने में भी सहायक सिद्ध होंगे।

धन्यवाद।

सुनील दत्त गोयल

महानिदेशक

इम्पीरियल चैंबर ऑफ़ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री

जयपुर, राजस्थान

suneelduttgoyal@gmail.com

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पुराने औद्योगिक क्षेत्रों का पुनर्विकास: एक आवश्यक कदम।

शहरों से दूर पुराने औद्योगिक क्षेत्रों को स्थानांतरित करना और इन्हें रेजिडेंशियल/कमर्शियल हब के रूप में बदलना एक महत्वपूर्ण और राष्ट्रीय समस्या बन चुकी है। पिछले 70 वर्षों में विकसित औद्योगिक क्षेत्र आज शहरों के बीच में आ चुके हैं। ये क्षेत्र छोटे सड़कों, पानी और बिजली की समस्याओं का सामना कर रहे हैं, और इनकी ढांचागत मांगें बहुत बढ़ गई हैं, जिससे आसपास के क्षेत्रों का पर्यावरण बिगड़ गया है।

इन समस्याओं का समाधान केवल राज्य या केंद्र सरकार की ओर से ध्यान देने से ही संभव है। यहाँ कुछ महत्वपूर्ण सुझाव दिए गए हैं:

औद्योगिक क्षेत्रों की पहचान और पुनरनियोजन:
स्थानीय विकास प्राधिकरण, जैसे जयपुर में JDA या अलवर में अर्बन इंप्रूवमेंट ट्रस्ट, को अधिकृत किया जाए कि वे पुराने औद्योगिक क्षेत्रों की पहचान करें और उनकी डीपीआर (डिटेल्ड प्रोजेक्ट रिपोर्ट) तैयार करें।
इन क्षेत्रों के भविष्य का आकलन करते हुए उन्हें पुनरनियोजित किया जाए। इसके तहत, पुराने उद्योगपतियों को वहाँ से स्थानांतरित किया जाए और नए औद्योगिक पार्क बनाए जाएँ, जो अगले 50 वर्षों के लिए सक्षम हों।

नई सुविधाओं का निर्माण:
नए औद्योगिक पार्क में आवश्यक सुविधाएँ, जैसे बिजली, पानी, सड़कें, पार्किंग, और 24 घंटे भारी वाहनों का प्रवेश सुनिश्चित किया जाए।
बड़े ट्रीटमेंट प्लांट, बिजली का स्टेशन, सौर ऊर्जा संयंत्र, और वॉटर रेन वाटर हार्वेस्टिंग जैसी नई तकनीकों का उपयोग किया जाए।

औद्योगिक पार्क में आवासीय विकल्प:
कामगारों और गरीब वर्ग के लिए EWS (Economically Weaker Section) आवास या प्रधानमंत्री आवास योजना के अंतर्गत आवास निर्माण किया जाए। इससे रोजाना की ट्रैफिक समस्याओं से मुक्ति मिलेगी और उन्हें रोजगार और आवास एक ही स्थान पर मिल सकेगा।

उद्योगपतियों के लिए प्रोत्साहन:
पुराने औद्योगिक क्षेत्रों की जमीनों का उचित मूल्य देकर उद्योगपतियों को नई जगह पर प्लॉट उपलब्ध कराए जाएं।
जयपुर में JDA को अधिकृत किया जाए कि वह सभी जमीनों को इकट्ठा करे और उन पर सर्विस चार्ज ले। इन जमीनों को बेचकर संबंधित उद्योगपतियों को पैसे दिए जाएँ और नए औद्योगिक क्षेत्र में उचित दर पर प्लॉट उपलब्ध कराए जाएं।

समयबद्ध कार्य योजना:
यदि सरकार आज से इस योजना को लागू करती है, तो अगले 10 से 15 वर्षों में यह पुनरावृत्ति युद्धस्तर पर चल सकती है, जिससे जीडीपी में वृद्धि और लाखों रोजगार के अवसर उपलब्ध होंगे।

स्थानीय प्रतिनिधियों और औद्योगिक संगठनों की भूमिका:
सभी औद्योगिक संगठनों और स्थानीय जनप्रतिनिधियों से निवेदन है कि वे आगामी 50 वर्षों की आवश्यकताओं को ध्यान में रखते हुए नीतियों को तैयार करने में अपना महत्वपूर्ण सुझाव दें।

प्रस्तावित समाधान का उदाहरण:

मैं जयपुर का उदाहरण देता हूँ। 2012-13 में तत्कालीन सरकार को उदाहरण दिया था कि जालूपुरा और लाल कोठी के एमएलए क्वार्टरों को समाप्त कर दिया जाए और खाली जमीन का उपयोग कमर्शियल उद्देश्यों के लिए या किसी कमर्शियल कॉम्प्लेक्स के लिए ऑक्शन कर दिया जाए। विधानसभा के पास जो एमएलए क्वार्टर हैं, उन्हें तोड़कर बहु-मंजिला आवासीय परिसर बना दिया जाए। इससे सरकार के सभी माननीय विधायकगण एक ही जगह पर नई सुविधाओं और सुरक्षा के साथ बेहद अच्छे तरीके से निवास कर पाएंगे। उनकी सभी सुरक्षा सुनियोजित तरीके से एक ही स्थान पर उपलब्ध हो जाएगी और उन्हें रोजमर्रा की यातायात की समस्याओं का सामना नहीं करना पड़ेगा। यानी जनता भी खुश और हमारे माननीय विधायकगण भी खुश होंगे।
इन सुझावों के माध्यम से हम एक नए, सक्षम, आधुनिक, और सुरक्षित औद्योगिक वातावरण की ओर बढ़ सकते हैं। सरकार और संबंधित औद्योगिक संस्थाओं को इन सुझावों पर ध्यान देना चाहिए और आवश्यक कदम उठाने चाहिए। यह राष्ट्र निर्माण के लिए एक बड़े बदलाव की दिशा में पहला कदम हो सकता है।

धन्यवाद,
सुनील दत्त गोयल
महानिदेशक
इम्पीरियल चैंबर ऑफ़ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री
जयपुर, राजस्थान
suneelduttgoyal@gmail.com

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ई-रिक्शा: रोजगार का साधन या व्यापार का जरिया?

भारत और विशेष रूप से राजस्थान में, ई-रिक्शा चालकों की संख्या में लगातार वृद्धि हो रही है। यह एक ओर आम नागरिकों के लिए रोजगार का एक महत्वपूर्ण साधन बनता जा रहा है, वहीं दूसरी ओर कुछ लोग इसे व्यावसायिक मुनाफे के लिए उपयोग कर रहे हैं। इस प्रथा में, बड़ी संख्या में ई-रिक्शा खरीदे जाते हैं और इन्हें किराए पर चलाने के लिए उपलब्ध कराया जाता है।

ई-रिक्शा खरीदने और उन्हें किराए पर चलाने की इस प्रथा ने एक नया व्यापार मॉडल तैयार कर दिया है। सामान्यतः, एक व्यक्ति 10, 15, 20, या 50 तक ई-रिक्शा खरीद लेता है और उन्हें बड़े पैमाने पर किराए पर देता है। गरीब और बेरोजगार व्यक्ति, जिनके पास खुद का ई-रिक्शा खरीदने के लिए पैसे नहीं होते, वे इन्हें 200 से 500 रुपये प्रतिदिन के किराए पर लेते हैं।

हालांकि, इस प्रथा में कई समस्याएं उभरकर सामने आई हैं। सबसे बड़ी समस्या यह है कि यह व्यापार मॉडल रोजगार की तुलना में व्यावसायिक मुनाफे पर अधिक केंद्रित है। इसे सूदखोरी का एक नया रूप माना जा सकता है, जिसमें उच्च किराए के चलते गरीब चालकों पर आर्थिक दबाव बढ़ता है। इसके अलावा, एक ही व्यक्ति या कंपनी द्वारा बड़ी संख्या में ई-रिक्शा का स्वामित्व शहरों में ट्रैफिक जाम का प्रमुख कारण बन रहा है। अधिक रिक्शाओं के चलते सड़कों पर भीड़ बढ़ रही है, जिससे यातायात व्यवस्था प्रभावित हो रही है।

ई-रिक्शाओं की अधिकता से सड़कों पर यातायात की गति धीमी हो जाती है, विशेषकर व्यस्त बाजारों और शहरी क्षेत्रों में। इस स्थिति ने पैदल यात्रियों और अन्य वाहनों के लिए भी मुश्किलें बढ़ा दी हैं। भीड़-भाड़ वाले क्षेत्रों में, ई-रिक्शाओं की लंबी कतारें ट्रैफिक जाम की स्थिति उत्पन्न करती हैं, जिससे दुर्घटनाओं का खतरा भी बढ़ जाता है।

सरकार को इस समस्या का समाधान करने के लिए सक्रिय कदम उठाने की आवश्यकता है। इसके लिए, जिला परिवहन अधिकारी (डीटीओ) को निर्देश दिया जाना चाहिए कि वे इस प्रकार के ई-रिक्शा के पंजीकरण की स्कैनिंग करें। यदि किसी एक व्यक्ति या पते पर असामान्य संख्या में ई-रिक्शा पंजीकृत पाए जाते हैं, तो उनका पंजीकरण रद्द किया जाना चाहिए। इस प्रकार के कदम उठाकर, न केवल सूदखोरी पर अंकुश लगाया जा सकेगा, बल्कि जरूरतमंद नागरिकों के लिए रोजगार के अवसर भी बढ़ाए जा सकेंगे।

इसके अलावा, शहरी क्षेत्रों में ट्रैफिक व्यवस्था को सुधारने के लिए, ई-रिक्शाओं के लिए विशेष लेन बनाने या समय सीमा तय करने जैसे उपाय भी अपनाए जा सकते हैं। इस तरह की नीतियों से न केवल ट्रैफिक जाम की समस्या का समाधान होगा, बल्कि यह क्षेत्र एक स्वस्थ और स्थायी रोजगार का स्रोत भी बन सकेगा। सरकार और स्थानीय प्रशासन को मिलकर इस दिशा में काम करना चाहिए ताकि ई-रिक्शा चालक समुदाय की आर्थिक स्थिति में सुधार हो सके और यातायात व्यवस्था भी सुचारू रहे।

धन्यवाद,
सुनील दत्त गोयल
महानिदेशक
इम्पीरियल चैंबर ऑफ़ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री
जयपुर, राजस्थान
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भारत सरकार को सुझाव: आवश्यकता है एनसीसी और स्काउट गाइड को आपदा प्रबंधन के लिए प्रशिक्षित किए जाने की।

भारत, एक ऐसा देश है जहां प्राकृतिक आपदाएँ जैसे बाढ़, भूकंप, आगजनी, रेल, सड़क, पुल दुर्घटनाएँ, बड़े समारोहों में भगदड़ और चक्रवात जैसी घटनाएँ अक्सर होती हैं, आपदा प्रबंधन की तैयारियों को और मजबूत करने की सख्त आवश्यकता है। इस दिशा में राष्ट्रीय कैडेट कोर (NCC) और स्काउट गाइड जैसे संगठनों की भूमिका बेहद महत्वपूर्ण हो सकती है। वर्तमान में, ये संगठन देश की युवा शक्ति को अनुशासन, नेतृत्व, और सामाजिक सेवा की दिशा में प्रशिक्षित कर रहे हैं।

सरकार को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि स्कूलों के पाठ्यक्रमों में ऐसे बदलाव हों जिससे इन बच्चों को प्रारम्भ से ही आपदा प्रबंधन की ट्रेनिंग मिल सके। साथ ही, यह भी महत्वपूर्ण है कि स्नातक और स्नातकोत्तर पाठ्यक्रमों में आपदा प्रबंधन का स्पेशलाइजेशन हो और इन संगठनों के छात्रों को इसमें प्राथमिकता दी जाए।
इसके अतिरिक्त, राज्य और केंद्र सरकारों में उनकी भर्ती में प्राथमिकता देने से एक सशक्त कार्यबल तैयार किया जा सकता है जो न केवल आपदाओं में बल्कि बड़े सामाजिक, धार्मिक, और राजनीतिक आयोजनों में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकेगा। इस प्रकार का आत्मरक्षा बल तैयार करना राष्ट्र निर्माण में एक महत्वपूर्ण कदम होगा।

एनसीसी और स्काउट गाइड का महत्व
एनसीसी और स्काउट गाइड के माध्यम से छात्रों को अनुशासन, नेतृत्व, और आपातकालीन प्रतिक्रिया कौशल सिखाए जाते हैं। ये संगठन छात्रों को आपदा प्रबंधन में प्रशिक्षित करके देश की रक्षा में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं। साथ ही, इन संगठनों में शामिल होने से छात्रों में राष्ट्रीय एकता और अखंडता की भावना भी विकसित होती है।

एनसीसी के आंकड़े
कुल कैडेट्स: वर्तमान में NCC में लगभग 17 लाख कैडेट्स हैं, और सरकार ने इसे अगले 10 वर्षों में 27 लाख तक बढ़ाने की योजना बनाई है.

सक्रिय शाखाएँ: NCC के देशभर में 17 निदेशालय हैं, जो विभिन्न राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में फैले हुए हैं।

प्रशिक्षण संरचना: हर NCC बटालियन में 2,520 कैडेट्स को प्रशिक्षित करने की क्षमता है, जिससे यह संगठन विश्व का सबसे बड़ा युवा संगठन बनता है.

स्काउट गाइड के आंकड़े
कुल सदस्य: भारत में स्काउट और गाइड के लगभग 15 लाख सदस्य हैं, जो विभिन्न राज्यों में सक्रिय हैं.

सक्रिय शाखाएँ: स्काउट गाइड का नेटवर्क देश के कई शहरों और गांवों में फैला हुआ है, जो युवाओं को नेतृत्व और सामाजिक सेवा में प्रशिक्षित करता है।

ऐतिहासिक घटनाओं से सीख
भारत के विभिन्न हिस्सों में आई आपदाओं के दौरान NCC और स्काउट गाइड कैडेट्स ने अपने साहसिक योगदान से यह साबित किया है कि वे संकट के समय देश और समाज की सेवा में अग्रणी भूमिका निभा सकते हैं।

2001 का भुज भूकंप: इस आपदा के दौरान, एनसीसी कैडेट्स ने राहत कार्यों में सक्रिय रूप से भाग लिया, जिसमें बचाव अभियान और राहत सामग्री वितरण शामिल था। उनकी तत्परता और प्रशिक्षण ने प्रभावित क्षेत्रों में राहत कार्यों को तेज किया।

2013 का उत्तराखंड बाढ़: एनसीसी और स्काउट गाइड के सदस्यों ने बाढ़ प्रभावित क्षेत्रों में बचाव कार्यों में महत्वपूर्ण योगदान दिया। उन्होंने स्थानीय प्रशासन के साथ मिलकर लोगों को सुरक्षित स्थानों पर पहुँचाने और राहत सामग्री वितरित करने में मदद की।

COVID-19 महामारी: महामारी के दौरान, एनसीसी कैडेट्स ने जन जागरूकता अभियान चलाने और सुरक्षित प्रथाओं का पालन करने के लिए समुदायों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उन्होंने प्रशासन के साथ मिलकर विभिन्न जागरूकता कार्यक्रम आयोजित किए, जिससे लोगों को सही जानकारी मिल सकी।

इन घटनाओं ने यह स्पष्ट कर दिया है कि NCC और स्काउट गाइड के सदस्य आपदाओं के समय में अत्यधिक कुशल और समर्पित होते हैं। यदि इन्हें औपचारिक प्रशिक्षण दिया जाए, तो वे और भी अधिक प्रभावी ढंग से अपनी जिम्मेदारियों को निभा सकते हैं।

सरकारी नीतियों में सुधार की आवश्यकता –
भारत को आपदा प्रबंधन में और सशक्त बनाने के लिए सरकार को निम्नलिखित ठोस कदम उठाने चाहिए:

आपदा प्रबंधन में प्रशिक्षण: NCC और स्काउट गाइड के सभी कैडेट्स को आपदा प्रबंधन का अनिवार्य प्रशिक्षण दिया जाना चाहिए, जिसमें बाढ़, भूकंप, आग, और अन्य प्राकृतिक आपदाओं से निपटने के तरीके सिखाए जाएं।

विशेष कोर्स की शुरुआत: स्नातक और स्नातकोत्तर स्तर पर आपदा प्रबंधन में विशेष कोर्स शुरू किए जाने चाहिए, जिसमें NCC और स्काउट गाइड के छात्रों को प्राथमिकता दी जाए।

रोजगार में प्राथमिकता: एनडीआरएफ और एसडीआरएफ में भर्ती के समय भी NCC और स्काउट गाइड के छात्रों को प्राथमिकता दी जानी चाहिए, जिससे आपदा के समय त्वरित और प्रभावी कार्यवाही सुनिश्चित हो सके।

निष्कर्ष :-
NCC और स्काउट गाइड जैसे संगठनों में आपदा प्रबंधन का प्रशिक्षण जोड़ने से न केवल आपदा के समय देश को सशक्त बनाया जा सकता है, बल्कि छात्रों के बीच इन संगठनों की लोकप्रियता भी बढ़ाई जा सकती है। इसके साथ ही, सरकार को आपदा प्रबंधन के लिए समर्पित कोर्सेज की शुरुआत करनी चाहिए, जिसमें इन संगठनों के छात्रों को प्राथमिकता मिले। इतिहास में देखे गए योगदान के उदाहरण हमें यह बताते हैं कि NCC और स्काउट गाइड के प्रशिक्षित सदस्य आपदाओं के दौरान कितना महत्वपूर्ण काम कर सकते हैं। यदि इन्हें और अधिक औपचारिक प्रशिक्षण और अवसर प्रदान किए जाएं, तो ये संगठन समाज के लिए एक अमूल्य संपत्ति बन सकते हैं।

धन्यवाद,
सुनील दत्त गोयल
महानिदेशक
इम्पीरियल चैंबर ऑफ़ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री
जयपुर, राजस्थान
suneelduttgoyal@gmail.com

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भारत में बंद हो चुकी एयरलाइनों की कहानी: एक अवसर की अनदेखी और कार्रवाई का आह्वान

पिछले कुछ वर्षों में, भारतीय विमानन उद्योग ने असाधारण वृद्धि देखी है, और यह अब दुनिया के सबसे बड़े और सबसे तेजी से बढ़ते बाजारों में से एक बन गया है। लेकिन इस विकास के साथ ही, कई एयरलाइनों को भारी वित्तीय संकट का सामना करना पड़ा, जिसके कारण उन्हें अपना संचालन बंद करना पड़ा।

इन बंद हो चुकी एयरलाइनों के पास अभी भी कई विमान और अन्य मूल्यवान परिसंपत्तियां हैं, जो देश के विभिन्न हिस्सों में बेकार पड़ी हैं। यह स्थिति न केवल बड़े पैमाने पर निवेश का नुकसान है, बल्कि एक महत्वपूर्ण अवसर की अनदेखी भी है। हालांकि, इन संपत्तियों का पुनः उपयोग करने का कोई भी प्रयास तब तक सफल नहीं हो सकता, जब तक इन एयरलाइनों के ऋण निपटान का कोई ठोस समाधान न हो।

भारत में बंद हो चुकी एयरलाइनों पर एक नज़र

भारत में कई एयरलाइनों का उदय और पतन देखा गया है। यहां कुछ प्रमुख बंद हो चुकी एयरलाइनों की सूची दी गई है:

  • जेट एयरवेज (1993–2019): एक समय में भारत की सबसे बड़ी एयरलाइनों में से एक, जेट एयरवेज ने अप्रैल 2019 में वित्तीय समस्याओं के कारण अपना परिचालन बंद कर दिया। इसके पास 120 से अधिक विमान थे, जिनमें से कई अभी भी जमीन पर खड़े हैं।
  • किंगफिशर एयरलाइंस (2005–2012): अपनी लक्ज़री सेवाओं के लिए प्रसिद्ध, किंगफिशर एयरलाइंस को 2012 में वित्तीय नुकसान और ऋण के कारण बंद कर दिया गया। इस एयरलाइन के पास 60 से अधिक विमानों का बेड़ा था, जिनमें से कई अब खराब हो रहे हैं।
  • एयर डेक्कन (2003–2011): भारत की पहली लो-कॉस्ट कैरियर एयरलाइन, एयर डेक्कन, 2007 में किंगफिशर एयरलाइंस के साथ विलय कर दी गई थी। हालांकि, संयुक्त इकाई टिक नहीं सकी और अंततः बंद हो गई।
  • एयर सहारा (1991–2007): 2007 में जेट एयरवेज द्वारा अधिग्रहित, एयर सहारा ने 16 वर्षों तक संचालन किया, जिसके बाद इसका ब्रांड और संचालन समाप्त कर दिया गया।
  • पैरामाउंट एयरवेज (2005–2010): पैरामाउंट एयरवेज दक्षिण भारत में एक प्रीमियम क्षेत्रीय एयरलाइन थी। यह वित्तीय और कानूनी मुद्दों के कारण बंद हो गई।
  • वायुदूत (1981–1997): एयर इंडिया और इंडियन एयरलाइंस द्वारा संयुक्त रूप से संचालित एक क्षेत्रीय एयरलाइन, वायुदूत को गंभीर वित्तीय कठिनाइयों का सामना करना पड़ा, जिसके कारण 1997 में इसे बंद कर दिया गया।
  • मोदीलुफ्त (1993–1996): लुफ्थांसा के साथ साझेदारी में संचालित, मोदीलुफ्त को परिचालन और वित्तीय कठिनाइयों का सामना करना पड़ा, जिसके कारण इसे बंद करना पड़ा।
  • ईस्ट-वेस्ट एयरलाइंस (1992–1996): भारत की प्रारंभिक निजी एयरलाइनों में से एक, ईस्ट-वेस्ट एयरलाइंस को परिचालन चुनौतियों का सामना करना पड़ा और 1996 में इसे बंद कर दिया गया।

समस्या: बर्बाद हो रही संपत्तियां और ऋण समाधान की आवश्यकता

बंद हो चुकी इन एयरलाइनों के विमान और अन्य संपत्तियां देश के विभिन्न हिस्सों में खड़ी हैं। ये विमान, जो करोड़ों रुपये के हैं, समय के साथ पुरानी होती जा रही हैं, और इन्हें फिर से उपयोग में लाने के लिए महंगे रखरखाव की जरूरत है। यह स्थिति केवल निवेश का नुकसान नहीं, बल्कि एक बड़ी चुनौती है। इन संपत्तियों का राष्ट्र हित में उपयोग करना और भारत को विमानन के क्षेत्र में एक प्रमुख स्थान पर स्थापित करना आवश्यक है। इसे हल किए बिना कोई समाधान संभव नहीं है।

आवश्यकता: एक वृहद स्तर पर कमेटी का गठन

भारत सरकार को चाहिए कि एक एंपावर्ड कमेटी का गठन किया जाए, जिसमें इन एयरलाइंस को वित्तीय सहायता प्रदान करने वाले सभी वित्तीय संस्थानों या बैंकों के प्रतिनिधि, विमान निर्माता कंपनियों के तकनीकी, मूल्यांकन, और विक्रय प्रतिनिधि, इन एयरलाइंस के प्रमुख व्यक्ति, और भारत सरकार के वरिष्ठ अधिकारी शामिल हों। यानी  की और सभी स्टेक होल्डर्स और पॉलिसी होल्डर्स का एक साथ समावेश उस कमेटी में हो ताकि यह कमेटी कम से कम समय में सभी समस्याओं का आउट ऑफ द वे और आउट ऑफ कोर्ट समाधान तैयार करे। इसके बाद, भारत के माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी इस पर बड़ा निर्णय लें, जिससे ये एयरलाइंस फिर से संचालन में आ सकें। इससे लाखों लोगों को रोजगार मिलेगा और बैंकों व वित्तीय संस्थानों का फंसा हुआ कर्ज भी वसूल हो सकेगा।

समाधान: ऋण निपटान और परिसंपत्तियों का पुन: उपयोग

  • ऋण-से-इक्विटी स्वैप: बैंकों और वित्तीय संस्थानों के साथ बातचीत करके, एयरलाइनों के ऋण को इक्विटी में बदला जा सकता है, जिससे बैंकों को एयरलाइनों में स्वामित्व प्राप्त हो सकता है और वे इन संपत्तियों के पुन: उपयोग में शामिल हो सकते हैं।
  • वित्तीय पुनर्गठन: सरकार को वित्तीय पुनर्गठन योजनाओं पर विचार करना चाहिए, जहां ऋण को पुनर्वित्त या पुनर्गठित किया जाए ताकि एयरलाइनों को पुन: उपयोग के लिए आवश्यक वित्तीय स्थिरता मिल सके।
  • ऋण माफी और परिसंपत्तियों की बिक्री: कुछ मामलों में, बैंकों के साथ बातचीत कर एयरलाइनों के ऋण का कुछ हिस्सा माफ किया जा सकता है, और बदले में परिसंपत्तियों को बेचकर उससे प्राप्त धन का उपयोग किया जा सकता है।
  • ब्याज भुगतान पर स्थगन (Moratorium): बैंकों के साथ बातचीत कर एक अस्थायी मोरेटोरियम लागू किया जा सकता है, ताकि एयरलाइनों को अपनी परिसंपत्तियों का पुन: उपयोग करने का समय मिल सके।
  • सार्वजनिक-निजी साझेदारी (PPP): सरकार और निजी निवेशकों के बीच साझेदारी के माध्यम से पुन: वित्तपोषण योजनाओं को लागू किया जा सकता है।

परिसंपत्तियों का पुन: उपयोग: एक रणनीतिक दृष्टिकोण

  • लीज पर देना: इन विमानों को घरेलू या अंतर्राष्ट्रीय एयरलाइनों को लीज पर दिया जा सकता है, जिससे इनका पुन: उपयोग हो सके और उन्हें पुराना होने से बचाया जा सके।
  • एयरक्राफ्ट रीजुवेनेशन प्रोग्राम: सरकार द्वारा इन विमानों का पुनर्निर्माण और आधुनिकीकरण करने का कार्यक्रम शुरू किया जा सकता है।
  • सरकारी उपयोग के लिए तैनाती: कुछ विमानों को सरकारी एजेंसियों के लिए पुनः प्रयोजित किया जा सकता है।
  • पायलट प्रशिक्षण: विमानन अकादमियों द्वारा इन विमानों का उपयोग प्रशिक्षण के लिए किया जा सकता है।

निष्कर्ष

भारत में बंद हो चुकी एयरलाइनों के जमीन पर खड़े विमान और अन्य संपत्तियां एक महत्वपूर्ण अवसर का प्रतीक हैं, लेकिन उनका उपयोग तब तक संभव नहीं है जब तक कि इन एयरलाइनों के ऋण का समाधान न हो जाए। बैंकों और अन्य वित्तीय संस्थानों के साथ मिलकर ऋण निपटान के लिए एक ठोस रणनीति तैयार की जानी चाहिए, जो इन परिसंपत्तियों का पुन: उपयोग करने का मार्ग प्रशस्त करे। इस तरह, सरकार न केवल वित्तीय नुकसान को रोकेगी, बल्कि विमानन क्षेत्र में भी एक सकारात्मक योगदान दे सकेगी।

धन्यवाद,

सुनील दत्त गोयल
महानिदेशक
इम्पीरियल चैंबर ऑफ़ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री
जयपुर, राजस्थान

suneelduttgoyal@gmail.com

ई-मित्र केंद्रों पर सरकारी नियंत्रण की आवश्यकता: एक जरूरी कदम

ई-मित्र केंद्र सरकार की ओर से प्रदान की जाने वाली एक महत्वपूर्ण सेवा है, जो नागरिकों को विभिन्न सरकारी सेवाओं तक आसानी से पहुंचने में मदद करती है। हालांकि, पिछले कुछ वर्षों में, इन केंद्रों के संचालन में भ्रष्टाचार और अनियमितताओं के मामले सामने आए हैं, जो चिंताजनक हैं।

ई-मित्र केंद्रों की मौजूदा स्थिति

वर्तमान में, ई-मित्र केंद्रों का संचालन करने वाले अक्सर ठेके पर काम करने वाले लोग होते हैं, जो स्थानीय युवाओं को इस काम के लिए नियुक्त करते हैं। इन युवाओं को न केवल रोजगार मिलता है, बल्कि वे इन केंद्रों पर अपनी मनमर्जी से काम करते हैं। यह देखा गया है कि कई मामलों में, ई-मित्र केंद्रों के संचालक सरकारी निर्धारित फीस न लेकर अपनी मर्जी से फीस वसूलते हैं। इसके अलावा, जो लोग सेवाओं का लाभ उठाने के लिए आते हैं, उनके पासवर्ड, ओटीपी जैसी संवेदनशील जानकारियों का दुरुपयोग भी होता है।

ग्रामीण और कम जानकार नागरिक, जिनके पास खुद के घरों में कंप्यूटर नहीं होते या जो तकनीकी ज्ञान से वंचित होते हैं, अक्सर ई-मित्र केंद्रों पर निर्भर होते हैं। ये नागरिक अपनी मासूमियत के चलते उन कर्मियों के शिकार बनते हैं, जो भ्रष्ट गतिविधियों में लिप्त होते हैं। यह भी देखा गया है कि राशन कार्ड, आधार कार्ड, और अन्य दस्तावेजों की फर्जीवाड़ा करके जारी किए जाते हैं।

सुधार की आवश्यकता

सरकार को इन केंद्रों पर सख्त नियंत्रण स्थापित करने की आवश्यकता है। यह सुनिश्चित करना चाहिए कि ई-मित्र केंद्रों का संचालन करने वाले संचालक पूरी तरह से जवाबदेही के दायरे में हों। केंद्रों पर काम करने वाले कर्मचारियों की पूरी केवाईसी (Know Your Customer) प्रक्रिया का पालन किया जाना चाहिए, और किसी भी अनियमितता के पाए जाने पर कठोर दंडात्मक कार्रवाई की जानी चाहिए।

इसके अलावा, जो लोग फर्जीवाड़े में लिप्त पाए जाते हैं, उन्हें आजीवन इस तरह की सेवाओं से संबंधित किसी भी रोजगार से वंचित किया जाना चाहिए। यह कदम न केवल भ्रष्टाचार को कम करेगा, बल्कि जनता की सेवा में सुधार भी लाएगा।

तकनीकी निरीक्षण और प्रशिक्षण

ई-मित्र केंद्रों की तकनीकी संरचना की नियमित जांच भी आवश्यक है। सरकार को सुनिश्चित करना चाहिए कि सभी ई-मित्र केंद्रों में कार्यरत कर्मचारियों को उचित तकनीकी प्रशिक्षण मिले, जिससे वे नागरिकों की निजी जानकारी की सुरक्षा और गोपनीयता को बनाए रख सकें। इसके अलावा, नागरिकों को भी जागरूक किया जाना चाहिए कि वे अपने संवेदनशील डेटा को सुरक्षित रखने के लिए क्या कदम उठा सकते हैं।

डिजिटल भुगतान और रिकॉर्ड की पारदर्शिता

सरकार को ई-मित्र केंद्रों में डिजिटल भुगतान प्रणाली को प्रोत्साहित करना चाहिए, जिससे नकद लेनदेन की संभावनाएं कम हो सकें और लेनदेन की पारदर्शिता बढ़े। इससे नागरिकों के लिए सेवाओं की लागत का ट्रैक रखना आसान हो जाएगा और भ्रष्टाचार की संभावना भी घटेगी। साथ ही, सभी लेनदेन और सेवाओं का डिजिटल रिकॉर्ड रखा जाना चाहिए, जिससे भविष्य में किसी भी विवाद या अनियमितता की स्थिति में जांच में आसानी हो।

समुदाय की भागीदारी और निगरानी

समुदाय की भागीदारी और निगरानी से ई-मित्र केंद्रों के कार्यों में पारदर्शिता और विश्वसनीयता बढ़ सकती है। सरकार स्थानीय समुदायों ,निकायों और संगठनों को इस प्रक्रिया में शामिल कर सकती है, जिससे केंद्रों के संचालन की निगरानी अधिक प्रभावी हो सके। इसके लिए शिकायत निवारण तंत्र को भी मजबूत किया जाना चाहिए, जिससे नागरिक अपनी शिकायतें दर्ज करवा सकें और उन्हें समय पर निवारण मिल सके।

निष्कर्ष

ई-मित्र केंद्रों के संचालन में पारदर्शिता और जवाबदेही सुनिश्चित करना आवश्यक है। सरकार को इन केंद्रों पर सख्त नियंत्रण रखते हुए, भ्रष्टाचार और फर्जीवाड़े को रोकने के लिए कठोर कदम उठाने चाहिए। इससे न केवल जनता की सेवाओं में सुधार होगा, बल्कि नागरिकों का विश्वास भी बहाल होगा। तकनीकी निरीक्षण, कर्मचारियों का प्रशिक्षण, डिजिटल भुगतान की प्रवृत्ति, और समुदाय की भागीदारी के माध्यम से, ई-मित्र केंद्रों की सेवाओं की गुणवत्ता को और अधिक सुदृढ़ किया जा सकता है।

धन्यवाद,

सुनील दत्त गोयल
महानिदेशक
इम्पीरियल चैंबर ऑफ़ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री
जयपुर, राजस्थान

suneelduttgoyal@gmail.com

पंजीकरण समाप्त होने के बाद भी चल रहे वाहनों पर हो कार्यवाही

हमारे देश की सड़कों पर पंजीकरण समाप्त हो चुके वाहनों का चलना एक गंभीर समस्या बन गई है। यह न केवल यातायात नियमों का उल्लंघन है, बल्कि इससे सड़क दुर्घटनाओं के मामले में जिम्मेदारी तय करने में भी कठिनाई होती है। इस लेख में हम इस समस्या के विभिन्न पहलुओं पर चर्चा करेंगे और यह जानेंगे कि इस स्थिति में जिम्मेदार कौन होता है।

पंजीकरण समाप्त वाहनों पर कड़ी कार्रवाई
वाहनों के पंजीकरण प्रमाणपत्र समाप्त हो जाने पर उन्हें सड़क पर चलाना गंभीर अपराध है, जिससे बकाया रोड टैक्स, चालान, और यातायात उल्लंघनों की समस्याएं उत्पन्न होती हैं। अधिकतर वाहन मालिक केवल पंजीकरण के समय या वाहन बेचते समय परिवहन विभाग का दौरा करते हैं। सरकार को तुरंत पंजीकरण समाप्त वाहनों के मालिकों को नोटिस भेजना चाहिए और उन्हें विभाग में हाजिर होने का आदेश देना चाहिए। वाहनों की वास्तविक स्थिति की जांच के बाद ही पंजीकरण का नवीनीकरण किया जाए। जो वाहन रिपोर्ट नहीं करते, उन्हें जब्त कर स्क्रैप कर दिया जाए। इससे यातायात उल्लंघनकर्ताओं को कड़ा संदेश मिलेगा और सरकार के पास सभी वाहनों की वर्तमान स्थिति और मालिकों का डेटा होगा।
डीजल वाहनों का पंजीकरण 10 साल और पेट्रोल वाहनों का 15 साल से अधिक नहीं होना चाहिए और वाणिज्यिक वाहनों का पंजीकरण 5 साल से अधिक नहीं होना चाहिए।

प्रणाली में सुधार की आवश्यकता
हमारे देश में एक ऐसा सिस्टम विकसित होना चाहिए कि 15 या 20 साल के बाद, या जब तक वन टाइम टैक्स की वैलिडिटी होती है, उसके बाद वाहन और वाहन मालिक की केवाईसी पुनः होनी चाहिए। यानी कि री-केवाईसी का होना अति आवश्यक है। इन 10 से 15 सालों में बहुत से वाहन स्वामी अपना पता बदल लेते हैं या वाहन को बेच देते हैं और उसका स्वामित्व हस्तांतरण नहीं करवाते या उसे स्क्रैप कर देते हैं और स्क्रैप की सूचना सरकारी विभाग तक नहीं जाती। क्योंकि वहाँ पर इस तरह की कोई सुविधा नहीं है और दूसरा, बाहर बैठे दलाल और कमीशन एजेंट इतने पैसे मांगते हैं कि कोई व्यक्ति अगर ईमानदारी से काम करना चाहे और सरकार को सहयोग भी करना चाहे, तो वह वहाँ जाकर भ्रष्टाचार में डूबे हुए तंत्र को देखकर वापस आ जाता है।

सरकार का कदम
आज सरकार के पास सबसे बड़ी समस्या यह है कि जितने भी नए वाहन सड़क पर आते हैं, उनका तो रजिस्ट्रेशन हो जाता है, लेकिन वे वाहन कब स्क्रैप पर चले गए, साल्वेज में चले गए, रोड पर से बाहर हो गए या उनकी केवाईसी बदल गई, इसका सरकार को कोई पता नहीं होता। मेरा सरकार से यह निवेदन और सुझाव है कि सरकार स्वयं यह एक्शन ले कि जितने भी वाहन 15 साल पुराने रजिस्टर्ड हैं, उन सब का जो भी सरकार के कार्यालय में रिकॉर्ड दर्ज है, वहाँ एक स्पीड पोस्ट के जरिए उन्हें नोटिस भेजकर री-केवाईसी और वाहन की उपस्थिति सरकार के ऑफिस में जो कि डिस्ट्रिक्ट ट्रांसपोर्ट कार्यालय है, वहाँ भिजवाया जाए। जिससे वाहन की पुनः फिटनेस चेक हो और उसकी री-केवाईसी की जा सके। इससे सरकार को यह मालूम पड़ेगा कि वाकई में कितने वाहन खत्म हो चुके हैं।

मृत्यु पंजीकरण की आवश्यकता
जिस तरह मनुष्य का जीवन और मृत्यु पंजीकरण सरकार ने आवश्यक कर दिया है, उसी तरीके से वाहन का भी मृत्यु पंजीकरण आवश्यक करना चाहिए, जिससे सरकार को यह मालूम पड़े कि कितने जिला क्षेत्र में कितने प्रकार के वाहन पंजीकृत हैं और सड़क पर चल रहे हैं। इससे सरकार को सड़कों की, उनमें चलने वाले वाहनों की, और उनमें आवश्यक पेट्रोल की और अन्य कई पैरामीटर की जानकारी मिलेगी। सरकार को भविष्य की नई योजनाएं बनाने में यह बहुत लाभदायक होगा और दूसरे, इस तरह के वाहनों का जो दुरुपयोग हो रहा है और जो कानून की अवहेलना कर रहे हैं, वह भी बंद हो जाएगी।

निष्कर्ष
मुझे कई बार सरकारी तंत्र पर तरस भी आता है और हंसी भी आती है कि क्या ये लोग कभी अपने दिमाग का वाजिब इस्तेमाल देश के भले के लिए भी करते होंगे? क्या कभी किसी अधिकारी ने नहीं सोचा कि पिछले 75 साल से वाहनों के रजिस्ट्रेशन आज भी सरकार के रिकॉर्ड में दर्ज हैं?

धन्यवाद,
सुनील दत्त गोयल
महानिदेशक
इम्पीरियल चैंबर ऑफ़ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री
जयपुर, राजस्थान
suneelduttgoyal@gmail.com

Published in Samachar Jagat on 09-July-2024