भारत में बंद हो चुकी एयरलाइनों की कहानी: एक अवसर की अनदेखी और कार्रवाई का आह्वान

पिछले कुछ वर्षों में, भारतीय विमानन उद्योग ने असाधारण वृद्धि देखी है, और यह अब दुनिया के सबसे बड़े और सबसे तेजी से बढ़ते बाजारों में से एक बन गया है। लेकिन इस विकास के साथ ही, कई एयरलाइनों को भारी वित्तीय संकट का सामना करना पड़ा, जिसके कारण उन्हें अपना संचालन बंद करना पड़ा।
इन बंद हो चुकी एयरलाइनों के पास अभी भी कई विमान और अन्य मूल्यवान परिसंपत्तियां हैं, जो देश के विभिन्न हिस्सों में बेकार पड़ी हैं। यह स्थिति न केवल बड़े पैमाने पर निवेश का नुकसान है, बल्कि एक महत्वपूर्ण अवसर की अनदेखी भी है। हालांकि, इन संपत्तियों का पुनः उपयोग करने का कोई भी प्रयास तब तक सफल नहीं हो सकता, जब तक इन एयरलाइनों के ऋण निपटान का कोई ठोस समाधान न हो।
भारत में बंद हो चुकी एयरलाइनों पर एक नज़र
भारत में कई एयरलाइनों का उदय और पतन देखा गया है। यहां कुछ प्रमुख बंद हो चुकी एयरलाइनों की सूची दी गई है:
- जेट एयरवेज (1993–2019): एक समय में भारत की सबसे बड़ी एयरलाइनों में से एक, जेट एयरवेज ने अप्रैल 2019 में वित्तीय समस्याओं के कारण अपना परिचालन बंद कर दिया। इसके पास 120 से अधिक विमान थे, जिनमें से कई अभी भी जमीन पर खड़े हैं।
- किंगफिशर एयरलाइंस (2005–2012): अपनी लक्ज़री सेवाओं के लिए प्रसिद्ध, किंगफिशर एयरलाइंस को 2012 में वित्तीय नुकसान और ऋण के कारण बंद कर दिया गया। इस एयरलाइन के पास 60 से अधिक विमानों का बेड़ा था, जिनमें से कई अब खराब हो रहे हैं।
- एयर डेक्कन (2003–2011): भारत की पहली लो-कॉस्ट कैरियर एयरलाइन, एयर डेक्कन, 2007 में किंगफिशर एयरलाइंस के साथ विलय कर दी गई थी। हालांकि, संयुक्त इकाई टिक नहीं सकी और अंततः बंद हो गई।
- एयर सहारा (1991–2007): 2007 में जेट एयरवेज द्वारा अधिग्रहित, एयर सहारा ने 16 वर्षों तक संचालन किया, जिसके बाद इसका ब्रांड और संचालन समाप्त कर दिया गया।
- पैरामाउंट एयरवेज (2005–2010): पैरामाउंट एयरवेज दक्षिण भारत में एक प्रीमियम क्षेत्रीय एयरलाइन थी। यह वित्तीय और कानूनी मुद्दों के कारण बंद हो गई।
- वायुदूत (1981–1997): एयर इंडिया और इंडियन एयरलाइंस द्वारा संयुक्त रूप से संचालित एक क्षेत्रीय एयरलाइन, वायुदूत को गंभीर वित्तीय कठिनाइयों का सामना करना पड़ा, जिसके कारण 1997 में इसे बंद कर दिया गया।
- मोदीलुफ्त (1993–1996): लुफ्थांसा के साथ साझेदारी में संचालित, मोदीलुफ्त को परिचालन और वित्तीय कठिनाइयों का सामना करना पड़ा, जिसके कारण इसे बंद करना पड़ा।
- ईस्ट-वेस्ट एयरलाइंस (1992–1996): भारत की प्रारंभिक निजी एयरलाइनों में से एक, ईस्ट-वेस्ट एयरलाइंस को परिचालन चुनौतियों का सामना करना पड़ा और 1996 में इसे बंद कर दिया गया।
समस्या: बर्बाद हो रही संपत्तियां और ऋण समाधान की आवश्यकता
बंद हो चुकी इन एयरलाइनों के विमान और अन्य संपत्तियां देश के विभिन्न हिस्सों में खड़ी हैं। ये विमान, जो करोड़ों रुपये के हैं, समय के साथ पुरानी होती जा रही हैं, और इन्हें फिर से उपयोग में लाने के लिए महंगे रखरखाव की जरूरत है। यह स्थिति केवल निवेश का नुकसान नहीं, बल्कि एक बड़ी चुनौती है। इन संपत्तियों का राष्ट्र हित में उपयोग करना और भारत को विमानन के क्षेत्र में एक प्रमुख स्थान पर स्थापित करना आवश्यक है। इसे हल किए बिना कोई समाधान संभव नहीं है।
आवश्यकता: एक वृहद स्तर पर कमेटी का गठन
भारत सरकार को चाहिए कि एक एंपावर्ड कमेटी का गठन किया जाए, जिसमें इन एयरलाइंस को वित्तीय सहायता प्रदान करने वाले सभी वित्तीय संस्थानों या बैंकों के प्रतिनिधि, विमान निर्माता कंपनियों के तकनीकी, मूल्यांकन, और विक्रय प्रतिनिधि, इन एयरलाइंस के प्रमुख व्यक्ति, और भारत सरकार के वरिष्ठ अधिकारी शामिल हों। यानी की और सभी स्टेक होल्डर्स और पॉलिसी होल्डर्स का एक साथ समावेश उस कमेटी में हो ताकि यह कमेटी कम से कम समय में सभी समस्याओं का आउट ऑफ द वे और आउट ऑफ कोर्ट समाधान तैयार करे। इसके बाद, भारत के माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी इस पर बड़ा निर्णय लें, जिससे ये एयरलाइंस फिर से संचालन में आ सकें। इससे लाखों लोगों को रोजगार मिलेगा और बैंकों व वित्तीय संस्थानों का फंसा हुआ कर्ज भी वसूल हो सकेगा।
समाधान: ऋण निपटान और परिसंपत्तियों का पुन: उपयोग
- ऋण-से-इक्विटी स्वैप: बैंकों और वित्तीय संस्थानों के साथ बातचीत करके, एयरलाइनों के ऋण को इक्विटी में बदला जा सकता है, जिससे बैंकों को एयरलाइनों में स्वामित्व प्राप्त हो सकता है और वे इन संपत्तियों के पुन: उपयोग में शामिल हो सकते हैं।
- वित्तीय पुनर्गठन: सरकार को वित्तीय पुनर्गठन योजनाओं पर विचार करना चाहिए, जहां ऋण को पुनर्वित्त या पुनर्गठित किया जाए ताकि एयरलाइनों को पुन: उपयोग के लिए आवश्यक वित्तीय स्थिरता मिल सके।
- ऋण माफी और परिसंपत्तियों की बिक्री: कुछ मामलों में, बैंकों के साथ बातचीत कर एयरलाइनों के ऋण का कुछ हिस्सा माफ किया जा सकता है, और बदले में परिसंपत्तियों को बेचकर उससे प्राप्त धन का उपयोग किया जा सकता है।
- ब्याज भुगतान पर स्थगन (Moratorium): बैंकों के साथ बातचीत कर एक अस्थायी मोरेटोरियम लागू किया जा सकता है, ताकि एयरलाइनों को अपनी परिसंपत्तियों का पुन: उपयोग करने का समय मिल सके।
- सार्वजनिक-निजी साझेदारी (PPP): सरकार और निजी निवेशकों के बीच साझेदारी के माध्यम से पुन: वित्तपोषण योजनाओं को लागू किया जा सकता है।
परिसंपत्तियों का पुन: उपयोग: एक रणनीतिक दृष्टिकोण
- लीज पर देना: इन विमानों को घरेलू या अंतर्राष्ट्रीय एयरलाइनों को लीज पर दिया जा सकता है, जिससे इनका पुन: उपयोग हो सके और उन्हें पुराना होने से बचाया जा सके।
- एयरक्राफ्ट रीजुवेनेशन प्रोग्राम: सरकार द्वारा इन विमानों का पुनर्निर्माण और आधुनिकीकरण करने का कार्यक्रम शुरू किया जा सकता है।
- सरकारी उपयोग के लिए तैनाती: कुछ विमानों को सरकारी एजेंसियों के लिए पुनः प्रयोजित किया जा सकता है।
- पायलट प्रशिक्षण: विमानन अकादमियों द्वारा इन विमानों का उपयोग प्रशिक्षण के लिए किया जा सकता है।
निष्कर्ष
भारत में बंद हो चुकी एयरलाइनों के जमीन पर खड़े विमान और अन्य संपत्तियां एक महत्वपूर्ण अवसर का प्रतीक हैं, लेकिन उनका उपयोग तब तक संभव नहीं है जब तक कि इन एयरलाइनों के ऋण का समाधान न हो जाए। बैंकों और अन्य वित्तीय संस्थानों के साथ मिलकर ऋण निपटान के लिए एक ठोस रणनीति तैयार की जानी चाहिए, जो इन परिसंपत्तियों का पुन: उपयोग करने का मार्ग प्रशस्त करे। इस तरह, सरकार न केवल वित्तीय नुकसान को रोकेगी, बल्कि विमानन क्षेत्र में भी एक सकारात्मक योगदान दे सकेगी।
धन्यवाद,
सुनील दत्त गोयल
महानिदेशक
इम्पीरियल चैंबर ऑफ़ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री
जयपुर, राजस्थान
suneelduttgoyal@gmail.com