साइबर अपराधों का बढ़ता कहर: बैंक कर्मियों , सिम विक्रेताओं और ई-मित्र केंद्रों की मिलीभगत ने जनता को लूटा – पुलिस परेशान।

डिजिटल इंडिया के सपने के साथ देश तेजी से तकनीकी प्रगति की ओर बढ़ रहा है, लेकिन इस प्रगति की आड़ में साइबर अपराधों का खतरा भी गंभीर रूप से बढ़ गया है। बैंक कर्मियों , सिम कार्ड विक्रेताओं और ई-मित्र केंद्रों की मिलीभगत ने इस समस्या को और बढ़ावा दिया है। मेहनतकश नागरिकों की कमाई पर साइबर अपराधियों का निशाना अब एक विकराल समस्या बन गई है। इस मिलीभगत से जनता का विश्वास टूट रहा है और अपराधियों को लूट-खसोट का खुला मैदान मिल रहा है।
बैंकों की कमजोर प्रणाली
बैंक, जो जनता के धन और विश्वास की नींव पर खड़े होते हैं, अब खुद धोखाधड़ी के मामलों में सवालों के घेरे में हैं। कई बैंकों में फर्जी दस्तावेजों के आधार पर खाते खोल दिए जाते हैं। केवाईसी (KYC) प्रक्रिया, जो सुरक्षा का मुख्य आधार है, अक्सर महज औपचारिकता बनकर रह जाती है। इसके कारण अपराधी फर्जी खातों का उपयोग कर लेन-देन को अंजाम देते हैं।
इसके अलावा, संदिग्ध लेन-देन की अनदेखी बैंकिंग प्रणाली की सबसे बड़ी खामी है। आरबीआई के नियमों के अनुसार, ₹50,000 से अधिक की नकद जमा या निकासी होने पर तुरंत उस खाते की जांच की जानी चाहिए। इसके अलावा, महीने में ₹1,00,000 से अधिक एवं 1 वर्ष में 10 लख रुपए तक का ही ट्रांजैक्शन आरबीआई के द्वारा अधिकृत है इससे ज्यादा का ट्रांजैक्शन होने पर खाताधारक से संपर्क किया जाना चाहिए और ट्रांजैक्शन की सत्यता की पुष्टि की जानी चाहिए। बैंक कर्मियों द्वारा POS मशीन किसी को जारी करने पर यह सुनिश्चित करना चाहिए की आवेदक के व्यापार के लिए सही में इसकी आवश्यकता है भी या नहीं। जहाँ भी POS मशीन जारी की जाती है वहां की वीडियो KYC रिकॉर्ड की जानी चाहिए जिसमें बैंक कर्मी के साथ व्यापारी के साथ लाइव लोकेशन पर रिकॉर्डिंग होनी चाहिए।
आरबीआई को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि किसी भी असाधारण अमाउंट के खाते में जमा होने पर उसे तुरंत होल्ड पर रख दिया जाना चाहिए और खाताधारक से संपर्क करके यह मालूम करें कि यह पैसा उसके पास कहां से आया वह उसका स्रोत बताएं अन्यथा वह पूरी सूचना आयकर विभाग को तुरंत सूचित कर दें और पुलिस को सूचना कर दें क्योंकि एक सामान्य बचत खाते में इस तरह का बड़ा अमाउंट अगर आता है तो अपने आप ही शक के घेरे में आ जाता है और बैंक वालों के लिए यह मालूम करना बड़ा आसान काम है कि अमाउंट किसका आया और कहां से है यह दोनों उनको मालूम पड़ जाता है और यह अमाउंट अगर 3-4 दिन के लिए भी होल्ड कर दिया जाए तो जिसके साथ भी धोखाधड़ी हुई है उसकी सूचना पुलिस व बैंक तक पहुंच भी जाएगी और वह पैसा बैंक के खाते में ही जमा रह जाएगा ।
सिम कार्ड विक्रेताओं का गैर-जिम्मेदार रवैया
टेलीकॉम सेक्टर में भी गहरी मिलीभगत देखने को मिल रही है। सिम कार्ड वितरकों द्वारा बिना उचित दस्तावेज़ सत्यापन के सिम जारी करना एक आम बात हो गई है। फर्जी पहचान पत्रों के सहारे जारी किए गए सिम कार्डों का इस्तेमाल अपराधी जनता को ठगने और गुमनाम रहने के लिए करते हैं।
कई बार एक ही व्यक्ति के नाम पर 10-15 सिम कार्ड तक जारी कर दिए जाते हैं, जबकि नियमानुसार अधिकतम 9 सिम कार्ड जारी किए जा सकते हैं। टेलीकॉम कंपनियों की इस मिलीभगतसे सिम कार्डों का दुरुपयोग बढ़ गया है।
ई-मित्र केंद्र: धोखाधड़ी का नया अड्डा
जहां एक ओर ई-मित्र केंद्रों को सरकारी सेवाओं को आम लोगों तक पहुंचाने का माध्यम माना जाता है, वहीं ये केंद्र अब साइबर अपराधों का नया अड्डा बनते जा रहे हैं। ई-मित्र केंद्रों पर ग्राहकों की जानकारी बिना उचित सत्यापन के दर्ज की जाती है, जिससे उनकी गोपनीय जानकारी अपराधियों तक पहुंच जाती है। कई ई-मित्र केंद्रों पर फर्जी खातों को खोलने और सिम कार्ड वितरित करने में मिलीभगत के आरोप भी लग चुके हैं। यह स्थिति न केवल जनता की सुरक्षा के लिए खतरा है, बल्कि डिजिटल सेवाओं पर से भरोसा भी कम करती है।
ई-मित्र केंद्रों पर काम कर रहे कर्मचारियों की भी पुलिस वेरिफिकेशन द्वारा गहन जांच करने की आवश्यकता है यदि कोई कर्मचारी इस तरह की संदिग्ध गतिविधियों में संलिप्त पाया जाता है तो उसे राष्ट्रदोह की श्रेणी का अपराध मानते हुए आजीवन इस तरह के कार्य करने के लिए बैन कर देना चाहिए।
संस्थानों की मिलीभगत से अपराधियों को बढ़ावा
बैंक कर्मियों , सिम विक्रेताओं और ई-मित्र की मिलीभगत ने साइबर अपराधियों को एक सुनहरा मौका दिया है। ये अपराधी जनता की मेहनत की कमाई को ठगकर उसे देश विरोधी गतिविधियों में लगा रहे हैं। हाल के मामलों में देखा गया है कि कैसे फर्जी खातों और सिम कार्डों का उपयोग आतंकी फंडिंग और अन्य अपराधों में किया गया।
क्या है समाधान?
इस बढ़ते खतरे को रोकने के लिए सरकार और संबंधित संस्थाओं को तुरंत कदम उठाने होंगे। बैंकों को अपनी केवाईसी प्रणाली को सख्त बनाना होगा। बड़े लेन-देन पर रियल-टाइम निगरानी सुनिश्चित करनी होगी। बैंक कर्मचारियों की जवाबदेही तय करनी होगी ताकि वे धोखाधड़ी के मामलों में शामिल न हों।
सिम कार्ड वितरण के लिए टेलीकॉम कंपनियों को सख्त नियम लागू करने होंगे। फर्जी दस्तावेजों पर सिम जारी करने वाले विक्रेताओं के लाइसेंस रद्द किए जाने चाहिए।
ई-मित्र केंद्रों की नियमित जांच और निगरानी अनिवार्य होनी चाहिए। इन केंद्रों द्वारा की गई किसी भी मिलीभगतपर भारी जुर्माना लगाना चाहिए और लाइसेंस रद्द करना चाहिए।
साइबर अपराधों की बढ़ती घटनाओं ने देश में डिजिटल सुरक्षा की गंभीरता को उजागर किया है। बैंक कर्मियों, सिम विक्रेताओं और ई-मित्र केंद्रों के कर्मचारियों की मिलीभगत से ना केवल जनता की संपत्ति छीन रही है, बल्कि देश की सुरक्षा को भी खतरे में डाल रही है। यदि समय रहते इन संस्थानों पर सख्त कार्रवाई नहीं की गई, तो जनता का विश्वास और देश की अर्थव्यवस्था दोनों को भारी नुकसान हो सकता है।
धन्यवाद,
सुनील दत्त गोयल
महानिदेशक
इम्पीरियल चैंबर ऑफ़ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री
जयपुर, राजस्थान
suneelduttgoyal@gmail.com